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Bihar Board Class 6th Civics Chapter 4 Solutions लेन-देन का बदलता स्वरूप

आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 6वीं राजनीतिक शास्त्र का पाठ ‘लेन-देन का बदलता स्वरूप’ का वस्तुनिष्ठ प्रश्न को देखने वाले है। Bihar Board Class 6th

Bihar Board Class 6th Civics Chapter 4 Solutions लेन-देन का बदलता स्वरूप

लेन-देन का बदलता स्वरूप

प्रश्न 1. वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते है?
उत्तर– जब किसी वस्तु की खरीद बिक्री दूसरे वस्तु के माध्यम से किया जाता है, उसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते है।

प्रश्न 2. मुद्रा विनिमय प्रणाली किसे कहते है?
उत्तर– जब किसी वस्तु की खरीद बिक्री मुद्रा अर्थात् रुपए या पैसे के माध्यम से किया जाता है, उसे मुद्रा विनिमय प्रणाली कहते है।

वस्तु-मुद्रा के बाद सर्वप्रथम धातु मुद्रा का चलन शुरू हुआ। इसमें लोहा, तांबा, पीतल, सोना, चाँदी आदि का प्रयोग किया जाता था। भारत में सबसे पहले चाँदी के सिक्के बने। दिल्ली की गद्दी पर बैठे शेरशाह सूरी ने ही एक चाँदी का सिक्का चलाया, जिसे उसने ‘रुपया’ नाम दिया।

भारत में मुगल साम्राज्य के समय में मुद्रा की मुहर चांदी का ‘रुपया’ तथा ताँबे का बना दाम चलता था। दक्षिण भारत में सोने के बने सिक्के हुण और पणम् का चलन था। आज जो सिक्के चलते हैं वे एल्यूमीनियम तथा निकिल के बने होते हैं। भारत में कागज के नोट छपवाने तथा जारी करने का अधिकार सिर्फ भारतीय रिजर्व बैंक को है।

प्रश्न 3. प्लास्टिक मुद्रा किसे कहते है?
उत्तर– प्लास्टिक मुद्रा एक प्रकार का प्लास्टिक का कार्ड होता है, जिसके द्वारा हम कभी भी और कहीं भी बैंक में जमा रुपया को निकाल सकते है और उससे कोई भी समान खरीद सकते है। जैसे– एटीएम, डेबिट कार्ड।

👉यंग इंडिया नामक पत्रिका महात्मा गांधी द्वारा लिखा गया है।

पाठ के अंदर पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1. यदि आपको बाजार से कुछ बर्तन और चादर खरीदना हो तो आप उसे पैसे से खरीदना चाहेंगे या वस्तु के माध्यम से ? और क्यों ?
उत्तर– यदि मुझे बाजार से कुछ बर्तन और चादर खरीदने हो तो मैं उसे नकद पैसे देकर ही खरीदूँगा। कारण कि आज वस्तु के बदले वस्तु का लेन-देन का रावाज समाप्त हो चुका है। न तो बर्तन वाला वस्तु लेना चाहेगा और न तो चादर वाला। आज की स्थिति में मुझे अपनी वस्तु को बाजार में बेचकर मुद्रा प्राप्त करनी होगी और उस मुद्रा से बर्तन, चादर या कोई भी वस्तु खरीदना होगा ।

प्रश्न 2. गाँवों / शहरों में वस्तु-विनिमय प्रणाली का और कौन-कौन सा उदाहरण दिखता है ?
उत्तर– शहरों में तो नहीं, लेकिन गाँवों में लोहार, बढ़ई, हजाम, धोबी आदि को फसल कटने पर कुछ भाग दिया जाता है और बदले वे किसानों को अपनी छोटी- मोटी सेवाएँ सालों भर देते हैं। लेकिन यह परम्परा भी अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। आज के नवयुवक खेत-खेत घूमकर अनाज एकत्र करना नहीं चाहते। वे शहरों में जाकर आय प्राप्त करना अधिक पसन्द करते हैं

प्रश्न 3. क्या इसके अतिरिक्त भी कोई अन्य परम्परा है जिसके माध्यम से लेन-देन देखने को मिलता है? जैसे की शादी विवाह के समय ?
उत्तर– हाँ, गाँवों में विवाह के समय मानर पूजाई में डुगडुगी बजाने वाले / वाली को नेग देना पड़ता है। हजाम / हजामिन को कदम-कदम पर नेग देना पड़ता है। बढ़ई को पीढ़ियाँ देनी पड़ती है, जिसके बदले उसे धोती-साड़ी और नगद मुद्रा दी जाती है। लेकिन ये सब परम्पराएँ शहरों से समाप्त होती जा रही हैं।

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प्रश्न 4. लेन-देन के माध्यम के रूप में पैसा सभी द्वारा स्वीकार किया जाता है। पैसे द्वारा किसी भी वस्तु का मूल्य आसानी से तय किया जा सकता है। इसका संग्रह, संचय या बचत करना सुविधाजनक है। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना आसान होता है। यह कैसे ? समझाएँ।
उत्तर– कोई भी व्यक्ति अपना उत्पादन बेचकर पैसा (धन) एकत्र कर सकता है। जो पैसा उसे मिलता है, पूरे देश में सभी उसे स्वीकार करते हैं। अतः लेन-देन का यह उपयोग माध्यम बन गया है। इसका संचय करना आसान है, क्योंकि अनाज या अन्य सामानों की तरह यह सड़-गड़ नहीं सकता। पहले उत्पादन एक जगह से दूसरी जगह ले जाना खर्च साध्य और कठिन था, आसानी से कहीं-से-क़हीं ले जाया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि लेकिन नगद पैसा मुद्रा के प्रचलन से उत्पादक से लेकर क्रेता-विक्रेता तक सभी को आसानी हो गई है।

प्रश्न 5. रचित और दुकानदार को क्या सुविधा प्राप्त हुई?
उत्तर– रचित और दुकानदार को फायदा यह हुआ कि रचित ने खरीदे गये सामानों के बदले दुकानदार को नगद रुपया दिया । इस रुपया से दुकानदार आगे अपना स्टॉक पूरा करने के लिए उस रुपये से थोक में वस्तुएँ मँगाएगा। खरीद-बिक्री से हुई आय द्वारा वह अपने घरेलू सामान खरीदने में भी व्यय करेगा। उसकी जगह यदि रचित अनाज देता तो दुकानदार को काफी दिक्कत होती। शायद यह भी हो सकता था कि दुकानदार अनाज लेता ही नहीं ।

प्रश्न 6. यहाँ मुद्रा विनिमय का कौन-सा गुण दिखाई दिया जो वस्तु विनियम में नहीं है ?
उत्तर– यहाँ मुद्रा विनियम का वह गुण दिखाई दिया है, जो वस्तु विनियम प्रणाली में नहीं मिलता। वस्तु विनियम में दिक्कत है कि वस्तु को लेना और पुनः उस वस्तु से दुकान का स्टॉक बढ़ाया नहीं जा सकता। इस प्रकार खरीद-बिक्री, लेन-देन सब कठिन हो जाएगा।

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प्रश्न 7. चेक द्वारा लेन-देन कैसे किया जाता है ?
उत्तर– चेक द्वारा लेन-देन इस प्रकार होता है कि चेक काटने वाले व्यक्ति का रुपया बैंक विशेष में जमा रहता है। उसी जमा रुपये के एवज में खातेदार बैक विशेष का चेक काटता है कि अमुक व्यक्ति को इतना रुपया दे दिया जाय । नीचे खातेदार का हस्ताक्षर रहता है । जिस व्यक्ति के नाम चेक काटा गया है वह व्यक्ति बैंक में जाकर उतना रुपया प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 8. एटीएम मशीन के आने से क्या सुविधा मिली? इसके प्रयोग में क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर– एटीएम मशीन के आ जाने से यह सुविधा मिली है कि बिना बैंक में प्रवेश किये बाहर से इच्छानुसार रुपया निकाला जा सकता है, यदि उतना रुपया बैंक में जमा हो। देश के किसी भी कोने में उस बैंक की शाखा या किसी भी बैंक के एटीएम से रुपया निकला जा सकता है। इसके प्रयोग में यह सावधानी बरतनी चाहिए कि एटीएम कार्ड पूर्णतः सुरक्षा में रखा जाय।

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प्रश्न 9. क्या चेक से लेन-देन करने में पत्र मुद्रा की आवश्यकता होती है?
उत्तर– चेक स्वयं एक पत्र मुद्रा है। इसके बदले बैंक करेंटी नोट देता है जो पत्र मुद्रा ही होता है। इस प्रकार चेक से लेन-देन पत्र मुद्रा से ही आरम्भ होता है और उसी पर अंत होता है।

अभ्यास : प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न 1. बिना पैसे के लेन-देन में ‘भाव’ कैसे तय होता है?
उत्तर– बिना पैसे के लेन-देन में खूँट के हिसाब से भाव तय होता है। जैसे एक खूँट के बदले दो खूँट या दो खूँट के बदले तीन खूँट । अनाज का भाव इसी प्रकार तय होता है। अन्य सामान के साथ इतने सामान के बदले इतना सामान । जैसे एक घड़ा के बदले दो हाथ कपड़ा या तीन हाथ कपड़ा । वास्तव में यह प्रणाली बहुत कठिन होती है। इसी को वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 2. पैसे के माध्यम से लेन-देन में किस प्रकार सहूलियत होती है ?
उत्तर– पैसे के माध्यम से लेन-देन में इस प्रकार सहूलियत हुई कि जिस वस्तु का जितना मूल्य होता है. उतना नगदी पैसा दे दिया जाता है। यह बात दूसरी है कि खरीद-बिक्री के समय मोल तोल होता है । जिस भाव पर खरीद बिक्री तय हो जाता है उतना सामान या वह सामान लेकर बदले में रुपया-पैसे तक में भुगतान कर दिया जाता है। लेन-देन में कोई कठिनाई नहीं होती । सहूलियत ही सहूलियम होती है।

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प्रश्न 3. रचित तथा दुकानदार को लेन- देन में क्या सहूलियत हुई ?
उत्तर– रचित तथा दुकानदान को लेन- देन में यह सहुलियत हुइ कि उनकी लेन- देन में मुद्रा का उपयोग किया गया।

प्रश्न 4. मुद्रा का चलन कैसे शुरू हुआ ?
उत्तर– वस्तु विनियम की कठिनाइयों से ग्रस्त समाज ने सोचा कि कोई ऐसी वस्तु को चुना जाय जिसके मूल्य में जल्दी गिरावट न आए और उसे संचित करने और कहीं ले जाने और कहीं से लाने में सुविधा हो। इन्हीं परिस्थितियों में मुद्रा का चलन शुरू हो गया। हालाँकि उसे आज की स्थिति तक पहुँचने में कई स्तरों से गुजरना पड़ा है।

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प्रश्न 5. पत्र मुद्रा कैसे शुरू हुई होगी ?
उत्तर– आरम्भ में धातु मुद्रा चली। इसमें भी एक कठिनाई देखी गई कि धातु वजनी होता है। अधिक धन कहीं ले जाने में कठिनाई होती थी कठिनाई से बचने के लिए सरकार की ओर से पत्र मुद्रा का चलन आरम्भ किया गया। पत्र मुद्रा से तात्पर्य कागजी मुद्रा है। चेक भी एक प्रकार की पत्र मुद्रा ही है।

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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 6वीं के राजनीतिक शास्त्र के पाठ 04 ‘लेन-देन का बदलता स्वरूप’ का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !

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