आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 7वीं अतीत से वर्तमान का पाठ ‘नये राज्य एवं राजाओं का उदय’ का नोट्स को देखने वाले है। Bihar Board Class 7th
नये राज्य एवं राजाओं का उदय |
नये राजवंशों का उदय
7वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक बहुत से नए राज्य और राजाओं का उदय हुआ। इसका मुख्य कारण राजाओं का कमजोर होना था। जब कोई राजा कमजोर पड़ जाते थे, तो राजा के अंदर काम करने वाले कर्मचारी, भू-स्वामी तथा सैनिकों का सरदार उस राज्य को अपने अधीन कर लेते थे।
उस समय राष्ट्रकूट राजवंश कर्नाटक के राजा चालुक्य के अधीन था। जब चालुक्य कमजोर पड़ गए तो दंतीदुर्ग ने राष्ट्रकूट को अपने अधीन कर लिया। और उस समय राष्ट्रकूट की राजधानी मान्यखेत थी।
गुर्जर प्रतिहार एक ब्राह्मण थे, जो अपना परंपरागत कार्य को छोड़कर शस्त्र अपना लिए और राजस्थान एवं गुजरात में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। और इस वंश का प्रमुख राजा नागभट्ट प्रथम था। जिसने अरबों से लोहा लिया।
और कुछ शासकों का चुनाव लोगों द्वारा किया गया। बिहार और बंगाल के प्रथम पाल वंश शासक गोपाल का चयन लोगों ने किया। इसके बारे में तिब्बती इतिहासकार लामा तारनाथ ने बताया और खलीमपुर ताम्र पत्र से भी इस बात का पता चलता है। और आगे चलकर गोपाल के वंशज पाल वंश के नाम से प्रसिद्ध हुए।
कश्मीर की रानी जो दिद्दा (बड़ी बहन) के नाम से जानी जाती थी। और यह मंत्रियों और सेना द्वारा चुनी गई थी।
इस काल में चार राजपूत वंश सबसे अधिक प्रसिद्ध थे। वे प्रतिहार (परिहार), चौहान (चहमान), सोलंकी (चालुक्य) और परमार था।
सामंत
जब कोई राजा किसी दूसरे राज्य के राजा को हरा देता था, तो उस समय हारे हुए राज्य को अपने राज्य में मिला लेता था। लेकिन 400 ईस्वी से लेकर 1000 ईस्वी तक जीते हुए राजा ने उस राज्य को अपने में नहीं मिलाया। और वह राज्य हारे हुए राजा को कुछ शर्त पर वापस कर दिया। हारे हुए राजा को यह स्वीकार करना पड़ता था, कि जीता हुआ राजा उसका स्वामी है। और जीता हुआ राजा को अधिपति कहा जाता था और हारे हुए राजा को सामंत कहा जाता था। हारे हुए राजा को और भी कई शर्ते माननी पड़ती थी।
राज्यों में प्रशासन
किसी भी राज्य का राजा सबसे शक्तिशाली होता है। इसलिए राजाओं को बड़ी बड़ी उपाधि भी दी गई थी। जैसे – महाराजाधिराज (राजाओं के राजा), परमेश्वर, त्रिभुवन चक्रवर्तीन (तीन भुवानों का स्वामी) । राज्य में उत्पादकों का एक वर्ग था जिसमें किसान, पशुपालक एवं कारीगर आते थे। राज्य की आय का मुख्य स्त्रोत राजस्व था, जिसे राजयोग या उपरिकर कहा जाता था। सभी उत्पादकों से लगान का एक हिस्सा लगान मानकर वसूला जाता था। और इस कर का उपयोग मंदिर, किला और युद्ध में किया जाता था।
कन्नौज के लिए संघर्ष
इस समय तक भारत में तीन शक्तिशाली राजाओं का उदय हुआ। मध्य एवं पश्चिम भारत के गुर्जर प्रतिहार, दक्कत के राष्ट्रकूट और बंगाल का पाल वंश। इन सभी के बीच हमेशा युद्ध होते रहते थे। और इन सभी का युद्ध अखांडा कन्नौज बना।
प्रश्न 1. आखिर कन्नौज संघर्ष का केंद्र बिंदु क्यों बना?
उत्तर– कन्नौज संघर्ष का केंद्र बिंदु इसलिए बना कि कन्नौज हर्ष की राजधानी थी और भारत का एक प्रसिद्ध नगर था। और जो कोई राजा इस क्षेत्र पर अधिकार कर लेता था, वह उत्तर भारत का राजा बन जाता था।
इतिहासकारों ने कन्नौज को त्रिपक्षीय (तीन पक्षों का) संघर्ष कहा। युद्ध करते-करते यह तीनों राजाए काफी कमजोर हो गए। जिसके कारण इनका राज्य सामंतो तथा सैनिकों ने छीन लिया। तथा उसी समय राजाओं के कमजोर होने के कारण उत्तर-पश्चिम से तुर्की ने इन क्षेत्रों में आक्रमण किया। इन आक्रमण करनेवाले में सबसे पहला महमूद गजनवी था।
जब भारत में तुर्की का आगमन हुआ उस समय यहां के राजाओं में आपसी संघर्ष शुरू था। इनमें कोई भी राज्य शक्तिशाली नहीं था। और इस समय समाज में शासक वर्ग, सैनिकों एवं आम जनता में तालमेल का अभाव था। तथा राजा और प्रजा के बीच काफी अधिक दूरी थी। और इस समय समाज का हर कोई व्यक्ति सैनिक नहीं बन सकता था।
महमूद गजनवी
गजनी, अफगानिस्तान का एक छोटा राज्य था। और महमूद यहां का एक उत्तराधिकारी था। और वह गजनी को बड़ा और शक्तिशाली राज्य बनाना चाहता था। जिसके लिए उसने धीरे धीरे सभी राज्यों को जीतने लगा। इसके बाद सन् 1010 और 1025 के बीच महमूद ने उत्तर भारत के बड़े मंदिरों पर हमला किया। इन नगरों में मथुरा, थानेश्वर, कन्नौज, वृंदावन और सोमनाथ शामिल था। और सन् 1030 ईस्वी में महमूद की मृत्यु हुआ, जिसके बाद लोगों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी।
इतिहासकार कहते है कि महमूद भारत में इस्लाम धर्म की प्रतिष्ठा को स्थापित करना चाहता था। और कुछ इतिहासकार कहते है कि महमूद भारत से धन लूटने आया था।
आक्रमणों का प्रभाव
महमूद भारत से धन को लूटकर वह गजनी वापस लौट जाता था। और इसने भारत पर लगभग 17 बार आक्रमण किया। और बहुत से राजाओं को पराजित कर देता था। जिसके कारण बहुत से आक्रमण कारिओं को भारत में आने का मौका मिल गया।
महमूद गजनवी के आक्रमण के लगभग डेढ़ सौ वर्ष के बाद भारत में तुर्की का आगमन हुआ। इस आक्रमण का नेतृत्व गौर के शासक मुहम्मद गौरी कर रहे थे। मुहम्मद गौरी का उद्देश्य लूटमार के साथ-साथ उत्तर भारत के क्षेत्रों को जीतकर अपने में मिलाना था।
1191 ईस्वी में भटिंडा के निकट तराइन गांव के मैदान में हुए प्रथम युद्ध में गौरी पराजित हुआ। इसके बाद 1192 ईस्वी में तराइन के द्वितीय युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज को हरा दिया। इसके बाद उत्तरी भारत में तुर्की राज्य की स्थापना हुई और इसके बाद दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुआ।
दक्षिण के राज्य
दक्षिण भारत के राज्यो में राष्ट्रकूट तथा चालुक्य शासक प्रसिद्ध थे। केरल में चेर वंश का शासन था। मदुरै में चोल साम्राज्य का शासन था। चोल राजाओं ने तमिलनाडु से धीरे-धीरे अन्य राज्य पर कब्जा शुरू करते हुए तथा पल्लव वंश के शासकों को हराते हुए दक्षिण भारत का सबसे बड़ा शासक बन गया।
चोल वंश के शासक विजयालय ने सबसे पहले साम्राज्य की स्थापना की। चोल वंश के प्रसिद्ध राजा राजराम प्रथम और उसका पुत्र राजेंद्र चोल था। राजराम प्रथम एक कुशल सेना संचालक था और उसने बहुत सारे क्षेत्रों को जीता था। और इसने श्री लंका और मालद्वीप पर अधिकार कर लिया था।
राजेंद्र चोल ने एक विशाल जल सेना का गठन किया था। इसके दो युद्ध प्रसिद्ध है।
(i) इसमें अपनी सेना को भारत के समुंद्री तट से होकर उड़ीसा को पार करती हुई गंगा नदी तक पहुंच गई।
(ii) इसने दूसरा युद्ध श्रीलंका और मालद्वीप में किया। जिसमें उसने जल तथा थल सेना का उपयोग कर अपने राज्य के व्यापारिक हितों की रक्षा किया।
एक नया शहर
राजेन्द्र चोल अपनी सेना को गंगा नदी तक ले गया। वहाँ से गंगा का पानी लेकर और अपने नये नगर में इस पानी को रखा। यह शहर गंगई–कोण्ड–चोलपुरम के नाम से जाना गया। इसका अर्थ था चोल शासक का नगर जो गंगा को लेकर आया था अर्थात् जिसने उत्तर भारत पर विजय प्राप्त की थी।
चोल प्रशासन
चोल प्रशासन में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति राजा होता था। और राजा मंत्री परिषद् की सलाह से काम करता था। और राजा का आदेश उसका निजी सचिव लिखा करता था। इस प्रकार चोल प्रशासन ने अपने राजाओं को सुचारू रूप से चलाता था। चोल राज्य को राष्ट्र कहा जाता था। संपूर्ण राष्ट्र के भागों में बांटा होता था, जिसे मंडलम कहा जाता था। और प्रत्येक मंडलम, कोट्टम् (कमिश्नरी) और कोट्टम नाडू (जिला) में बटा होता था।
ग्राम स्वशासन
बहुत से गांवों में शासन का संचालन राजकीय कर्मचारियों के द्वारा न कर स्वयं गांव वालों द्वारा किया जाता था।
भव्य मंदिर
चोल राजाओं द्वारा कई बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण कराया गया। जिसमें तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर एवं गंगई-कोण्ड-चोलपुरम के मंदिर प्रसिद्ध है। चोल राजाओं के समय में राजाओं, व्यापारियों तथा बड़े लोगों द्वारा काफी धन और जमीन दान में दिया जाने लगा। और मंदिर के कर्मचारियों(पंडित, संगीतकार, नर्तक) को दान में अनाज और भूमि दिया जाने लगा।
कृषि और सिंचाई
चोल साम्राज्य ने कृषि और सिंचाई पर ज्यादा ध्यान देकर अपने राज्य को बड़ा बनाने का प्रयास किया। और जंगलों को साफ कर कृषि करने योग्य बनाया गया।
पालवंश
पाल वंश का संस्थापक गोपाल था, जिसका चयन स्वंय वहाँ की जनता ने किया था। गोपाल के बाद धर्मपाल, देवपाल, एवं महिपाल अनेक ऐसे राजा हुये जिन्होंने उत्तरी भारत में एक मजबूत राज्य के रूप में उभारने का प्रयास किया।
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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 7वीं के अतीत से वर्तमान के पाठ 02 ‘नये राज्य एवं राजाओं का उदय’ का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !