आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 7वीं अतीत से वर्तमान का पाठ ‘तुर्क-अफगान शासन’ का नोट्स को देखने वाले है। तुर्क-अफगान शासन
तुर्क-अफगान शासन |
13वीं शताब्दी के शुरूआत में तुर्कों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। और दिल्ली सल्तनत की स्थापना किया। तुर्की लगभग 300 वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया। और यहां पर तुर्की द्वारा पांच राजवंशों का उदय हुआ।
1. गुलाम वंश (1206–1290 ईस्वी तक)
(i) कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 से 1210)
(ii) इल्तुतमिश (1210 से 1236)
(iii) रजिया (1236 से 1240)
(iv) बलबन (1266 से 1287)
2. खिलजी वंश (1290 से 1320 ईस्वी तक)
(i) जलालुद्दीन खिलजी (1290 से 1296)
(ii) अलाउद्दीन खिलजी (1296 से 1316)
3. तुगलक वंश (1320 से 1414 ईस्वी तक)
(i) गयासुद्दीन तुगलक (1320 से 1324)
(ii) मुहम्मद बिन तुगलक (1324 से 1351)
(iii) फिरोज शाह तुगलक (1351 से 1388)
4. सैयद वंश (1414 से 1451 ईस्वी तक)
(i) खिज्र खाँ (1414 से 1421)
5. लोदी वंश (1451 से 1526 ईस्वी तक)
(i) बहलोल लोदी (1451 से 1489)
(ii) इब्राहिम लोदी (1517 से 1526)
प्रश्न 1. गंगा जमुना दोआब किसे कहते है?
उत्तर– गंगा एवं जमुना नदियों के बीच की भूमि को गंगा जमुना दोआब कहते है।
तुर्क शासन की स्थापना
तुर्की शासक मुहम्मद गौरी ने भारत के विभिन्न भागों पर कब्जा कर लिया था। और उसके बाद उसने अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक भारत का शासक बना दिया था। 1206 ईस्वी में मुहम्मद गौरी के मूर्ति के बाद उसके गुलामों ने उसके द्वारा जीता गया सभी क्षेत्र को आपस में बांट लिया। और कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का क्षेत्र मिला।
👉 तुर्की शासकों को ममलूक भी कहा जाता है क्योंकि ये सुल्तानों के गुलाम (ममलूक) थे। और इनकी सत्ता का केन्द्र दिल्ली था इसलिए दिल्ली को ‘दिल्ली सल्तनत‘ कहा जाता है।
तुर्क राज्य का विस्तार
1290 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने गुलाम वंश के अंतिम शासक कैकुबाद को दिल्ली की गद्दी से हटाकर खिलजी वंश की स्थापना किया। और वंश का प्रसिद्ध शासक अलाउद्दीन खिलजी जो जलालुद्दीन खिलजी का दामाद था। और बाद जलालुद्दीन खिलजी को मरवा कर दिल्ली का शासक बन जाता है।
💠 अलाउद्दीन खिलजी, अपने गुलाम के साथ मिलकर दक्षिण भारत के क्षेत्र को जीता। और जितने के बाद हारे हुए राजाओं से कर लेने लगा, लेकिन शासन नहीं किया। और बाद में मुहम्मद तुगलक ने हारे हुए दक्षिण क्षेत्र पर सीधा शासन करने लगा।
दिल्ली के सुल्तान शासन कैसे चलाते थे?
दिल्ली के सुल्तान इन क्षेत्रों को सुचारु रूप से चलाने के लिए सूबेदार, सेनापति आदि को नियुक्त किया था। और इन लोग को फारसी भाषा में अमीर कहा जाता था। इस समय गुलामों को बेचने या खरीदने की प्रथा थी। और यह गुलाम अपने मालिक के प्रति वफादार थे।
इतिहासकार बरनी कहते है कि मुहम्मद बिन तुगलक ने निम्न वर्ग के लोगों को भी बड़े-बड़े पद दिए थे और उसे अपने राज-काज के भी पद देते थे।
अमीर वर्ग के लोग अपने सुल्तान के प्रति वफादार तो रहते थे, लेकिन उनके उत्तराधिकारियों के प्रति नहीं ।इसलिए शासक बदलने के साथ उसके अमीर वर्ग या अधिकारी भी बदल जाते थे। जिसके कारण पुराने अमीर वर्ग और नए अमीर वर्ग में मतभेद शुरू हो जाते थे।
केंद्रीय प्रशासन
सुल्तान अमीरों के सहयोग से शासन चलाने का काम करते थे।
(i) वजीर – राजस्व (कर) वसूलना
(ii) आरिजो ममालिक – सुल्तान की सेना का प्रबंधक
(iii) वकील–ए–दर = राजपरिवार की देखरेख करना
(iv) काजी – मुख्य न्यायाधीश
(v) दीवान–ए–इंशा राजकीय फरमान जारी करने वाला
(v) बारिद–ए–मुमालिक – गुप्त रूप से सूचना एकत्र करने वाला
अक्ता व्यवस्था
अमीर लोग अलग अलग इलाकों में रहते थे, और इन्हीं इलाकों को अक्ता कहते है। और इस इलाके के अधिकारी मुक्ति या वली कहे जाते थे। मुक्ति का काम इन इलाकों से कर वसूलना, राजा को सैनिक समर्थन देना था। मुक्ति इन इलाकों से जो भी कर वसूलता था, उसका थोड़ा हिस्सा राजा को दे देता था और थोड़ा हिस्सा खुद रख लेता था। और इसी वेतन से मुक्ति अपने सैनिकों को वेतन देता था।
स्थानीय प्रशासन
उस समय गांवों के राजस्व अधिकारी को शिकदार और सैनिक अधिकारी को फौजदार कहते थे। चौधरी लगभग एक सौ गांवों का प्रधान होता था। पटवारी गांव की भूमि एवं लगान का लेखा जोखा रखता था।
मंगोलों का खतरा
1219 ईस्वी में मंगोलों ने चंगेज खां के नेतृत्व में ट्रांस ऑक्सियाना (उजबेकिस्तान) पर हमला किया। इसके बाद दिल्ली पर आक्रमण किया। इस आक्रमण से बचने के लिए अलाउद्दीन खिलजी एवं मुहम्मद बिन तुगलक ने बहुत बड़ी सेना खड़ी की।
सैनिक प्रशासन
सैनिक विभाग (दीवान–ए–अर्ज) का प्रमुख अधिकारी आरिज–ए–मुमालिक था। आरिज–ए–मुमालिक का कार्य सैनिक भर्ती करना और सैनिकों को वेतन देना था। अलाउद्दीन खिलजी ने सैनिकों की हुलिया पहचाने पर जोर दिया और सैनिकों की घोड़े पर दाग लगाए जाते थे। जिससे इनकी पहचान हो सके। उस समय एक घुड़सवार सैनिकों को 234 टंका प्रति वर्ष वेतन मिलता था।
अलाउद्दीन खिलजी का मूल्य नियंत्रण
दिल्ली को मंगोलों से बचाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने विशाल सेना का निर्माण किया था। और इन सैनिकों की वेतन कम कर दिया। परन्तु उसके सैनिक सुविधापूर्वक रह सकें, इसके लिए उसने वस्तुओं के मूल्य को कम कर दिया। जिसके बाद उसके राज्य के नागरिक खुशी पूर्वक रहते थे। और अलाउद्दीन खिलजी ने सभी सामानों के लिए मूल्य निर्धारित किया था, अगर कोई व्यक्ति उससे अधिक मूल्य पर अनाज बेचता था वह दंड का भागी बनता था। अलाउद्दीन खिलजी, बरिद (खुफिया अधिकारी) के द्वारा बाजारों की मूल्यों पर नजर रखता था।
भूमि लगान प्राप्त करने के तरीके
जब तुर्कों ने भारत में अपना शासन कायम किया तब उन्होंने भूमि लगान वसूलने की पुरानी व्यवस्था को ही प्रचलित रखा। केवल कर वसूलने वाले अधिकारी को बदल दिया गया। खुत, मुकद्दम, चौधरी (धनी किसान वर्ग) का काम किसानों से भूमिकर (खराज) वसूलते थे। और इसके बदले इन्हें कर का एक हिस्सा मिलता था। ये सभी अपना भूमि कर भी इन्ही किसानों से वसूलते थे, इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने इन धनी किसान वर्ग को हटाकर अपने अधिकारी को कर वसूलने का अधिकार दे दिया।
मुहम्मद बिन तुगलक : एक प्रयोगधर्मी शासक – मुहम्मद बिन तुगलक हमेशा नए नए प्रयोग करने वाला शासक था।
राजधानी परिवर्तन
मुहम्मद बिन तुगलक ने 1327 ईस्वी में भारत की राजधानी दिल्ली को बदलकर देवगिरी रखा। और इसके बाद देवगिरी का नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया। और दिल्ली के निवासियों को दौलताबाद जाने को कहा।
खुरासान विजय
मुहम्मद बिन तुगलक, खुरासान (ईरान) को जितना चाहता था। खुरासान में इलखान मंगोलों का शासन था और अबू सैयद वहाँ का सुल्तान था। इसलिए मुहम्मद बिन तुगलक ने 3,70,000 सैनिकों की फौज तैयार की और उसके साथ साथ तरमशरीन और मिश्र के सुल्तान से दोस्ती की। लेकिन बाद में खुरासान के सुल्तान ने तरमशरीन और मिश्र के सुल्तान से दोस्ती कर दी। जिसके वजह से मुहम्मद बिन तुगलक का खुरासान पर विजय पाने की इच्छा फेल हो गई। और उसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक के सैनिकों ने डकैती और लूटमार शुरू कर दिया।
सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
मुहम्मद बिन तुगलक के समय में सोना और चांदी का कमी आ गया था, जिसके कारण उसने सोना और चांदी का सिक्का न बनाकर सांकेतिक सिक्का को चलाया। और सांकेतिक सिक्का सस्ते धातु का बना होता था। और इस सिक्का का नकल करना आसान था। लोग इस सिक्के का नकल कर अपने जरूरतों को पूरा करते थे। जिसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक को सांकेतिक सिक्का को बंद करना पड़ा।
कृषि सुधार
मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि को सुधारने के लिए एक योजना बनाई। जिसके लिए उसने कृषि विभाग (दीवान-ए-अमिरकोही) बनाया। और मुहम्मद बिन तुगलक का मुख्य उद्देश्य बंजर भूमि को खेती लायक बनाना था। परंतु यह योजना असफल रहा। क्योंकि सुल्तान ने जिन अधिकारियों को नियुक्त किया था, वे इस काम को करने लायक नहीं थे।
सल्तनत काल में कृषि उत्पादन
शुरुआती समय में भूमि अधिक मात्रा में मौजूद था। और खेती करने वाले की संख्या काफी कम थी। और उसके बाद दिल्ली में 25 फसलों की खेती की जाती थी। और मुहम्मद बिन तुगलक ने किसानों को सलाह दिया कि फसलों में अधिक सुधार करे। चीनी यात्री महुआन से बंगाल में रेशम के कीड़े पालने की जानकारी प्राप्त होती है।
नहरों द्वारा सिंचाई
मुहम्मद बिन तुगलक के बाद दिल्ली का शासक फिरोजशाह तुगलक बना। फिरोजशाह तुगलक ने खेती की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत से नहरों का निर्माण करवाया। जिसके परिणाम स्वरूप सभी गांवों में खेती होती थी।
सल्तनत काल में किसानों का जीवन
सल्तनत काल में किसानों की बड़ी आबादी गांवों में रहती थी। और एक गांव में 200 से 300 लोग रहते थे। किसानों खेती का कार्य करते थे। और वे अपने खेती के औजारों का मालिक होते थे। और उनके पास एक जोड़ा हल और बैल होता है। और उनके घर मिट्टी का बना होता था। और वे खाने के लिए मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते थे। और बड़े किसानों का घर बड़े होते थे, और उनके घर में बरामदे के अलावा भी अनेक कमरे थे। और घर के अगल बगल खेत होता था। और उनके घरों के दीवार पर चित्र बना होता था।
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