आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10वीं हिन्दी का पाठ ‘नागरी लिपि’ का नोट्स को देखने वाले है। Nagari lipi
नागरी लिपि |
लेखक परिचय
लेखक का नाम– गुणाकर मुले
जन्म– 3 जनवरी 1935 ई० (महाराष्ट्र के अमरावती जिला में)
मृत्यु– 16 अक्टूबर, 2009 ई०
इन्होनें अपनी पढ़ाई माराठी भाषा में की। मिडिल स्तर तक मराठी में पढ़ाई करने के बाद ये वर्धा चले गये और वहाँ उन्होनें दो वर्षों तक नौकरी की। इसके बाद इलाहाबाद में गणित विषय से एम० ए० किया।
रचनाएँ– अक्षरों की कहानी, भारतः इतिहास और संस्कृति, प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक, सौर मंडल, सूर्य, नक्षत्र लोक, भारतीय लिपियों की कहानी, भारतीय विज्ञान की कहानी आदि।
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘नागरी लिपि‘ गुणाकर मुले के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने देवनागरी लिपि के बारे में बताया है। लेखक का कहना है कि जिस लिपि में यह पुस्तक छपी है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं। इस लिपि की टाइप लगभग 250 वर्ष पहले बनी।
हिन्दी तथा इसकी बोलियाँ, संस्कृत एवं नेपाली आदि इसी लिपि में लिखी जाती है। विश्व में संस्कृत एवं अन्य पुस्तकें इसी लिपि में छपती है।
देश में बोली जाने वाली भिन्न-भिन्न भाषाएँ तथा बोलियाँ भी इसी लिपि में लिखी जाती है। तमिल, मलयालम, तेलुगु एवं कन्नड़ की लिपियों में भिन्नता दिखाई पड़ती है, लेकिन ये लिपियाँ भी नागरी की तरह ही ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है।
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लेखक का कहना है कि नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। यह लिपि नंदिनागरी लिपि कहलाती थी। दक्षिण भारत में तमिल- मलयालम और तेलुगु-कन्नड़ लिपियों का स्वतंत्र विकास हो रहा है, फिर भी कई शासकों ने नागरी लिपि का प्रयोग किया है। जैसे- ग्यारहवीं सदी में राजराज प्रथम और राजेन्द्र चोल जैसे चोल राजाओं ने सिक्कों पर नागरी अक्षर का प्रयोग किया। बारहवीं सदी में केरल के शासकों के सिक्कों पर “विर केरलस्य‘’।
इसी प्रकार नौवीं सदी के वरगुण का पलियम ताम्रपत्र नागरी लिपि में है। और ग्यारहवीं सदी में महमूद गजनवी के चाँदी के सिक्कों पर भी नागरी लिपि के शब्द मिलते हैं।
गजनवी के बाद मुहम्मद गोरी, अलाउदीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी सिक्कों पर नागरी शब्द लिखवाया। अकबर के सिक्कों पर नागरी लिपि में ‘रामसीय’ शब्द लिखा हुआ है। जिसका तात्पर्य है कि नागरी लिपि का प्रचलन ईसा की आठवीं- नौवीं सदी से आरंभ हो गया था।
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लेखक ने लिपि के पहचान में कहा है कि ब्राह्मी तथा सिद्धम् लिपि अक्षर तिकोन है जबकि नागरी लिपि के अक्षरों के सिरों पर लकिर की लम्बाई और चौड़ाई एक समान है।
प्राचीन नागरी लिपि के अक्षर आधुनिक नागरी लिपि से मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से तथा उत्तर भारत में नौवीं सदी से मिलने लग जाते हैं।
नागरी शब्द के उत्पति के संबंध में विद्वानों का मत एक नहीं है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात के नागर ब्राह्मण ने इस लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग किया था, इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा, किंतु कुछ विद्वानों के मत के अनुसार काशी को देवनगरी माना जाता है, इसलिए इसका नाम देवनागरी पड़ा।
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अल्बेरूनी के अनुसार 1000 ई० के आसपास नागरी शब्द अस्तित्व में आया। इतना निश्चित है कि नागरी शब्द किसी नगर अथवा शहर से संबंधित है। दूसरी बात यह है कि उत्तर भारत की स्थापत्य- कला की विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहा जाता था। यह नागर या नागरी उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता था।
उस समय उत्तर भारत में प्राचीन पटना सबसे बड़ा नगर था। साथ ही गुप्त शासक चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ‘विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था, संभव है कि गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर कहा गया हो और देवनगर की लिपि होने के कारण देवनागरी नाम दिया गया हो। मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में है।
नागरी लिपि पाठ का प्रश्न
प्रश्न 1. लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है ?
उत्तर– लेखक ने गुजराती, बांग्ला और ब्राह्मी लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।
प्रश्न 2. देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं ?
उत्तर– देवनागरी लिपि में मुख्यतः नेपाली, मराठी, संस्कृत, प्राकृत और हिन्दीभाषाएँ लिखी जाती हैं।
प्रश्न 3. नागरी लिपि के आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं। उनके विवरण दें।
उत्तर– विद्वानों के अनुसार नागरी लिपि के आरंभिक लेख विध्य पर्वत के नीचे के दक्कन प्रदेश से प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 4. नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी ?
उत्तर– ईसा की 8वीं-11वीं सदियों में नागरी लिपि पूरे देश में व्याप्त थी। अतः उस समय यह एक सार्वदेशिक लिपि थी।
प्रश्न 5. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है?
उत्तर– करीब दो सदी पहले पहली बार देवनागरी लिपि के टाइप बने और इसमेंपुस्तकें छपने लगी। इस प्रकार ही देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता आयी है।
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प्रश्न 6. उत्तर भारत में किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं ?
उत्तर– विद्वानों का विचार है कि उत्तर भारत में मिहिरभोज, महेन्द्रपाल आदि गुर्जर प्रतिहार राजाओं के अभिलेख में पहले-पहल नागरी लिपि लेख प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 7. गुर्जर प्रतिहार कौन थे ?
उत्तर– विद्वानों का विचार है कि गुर्जर-प्रतिहार बाहर से भारत आए थे। ईसा की आठवीं सदी के पूवार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन स्थापित किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था। मिहिरभोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतिहार शासक हुए।
प्रश्न 8. ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्यपहचान क्या है?
उत्तर– गुप्तकाल की ब्राह्मी लिपि तथा उसके बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोन हैं। लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये सिरो रेखाएँ उतनी ही लम्बी रहती हैं जितनी की अक्षरों की चौड़ाई होती है।
प्रश्न 9. नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं? लेखक इस संबंध में क्या जानकारी देता है ?
उत्तर– नागरी नाम की उत्पत्ति तथा इसके अर्थ के बारे में विद्वानों में बड़ामतभेद है। एक मत के अनुसार गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने पहले-पहल नागरी लिपि का इस्तेमाल किया। इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा। एक दूसरे मत के अनुसार बाकी नगर सिर्फ नगर है, परन्तु काशी देवनगरी है। इसलिए काशी में प्रयुक्त लिपि का नाम देवनागरी पड़ा।
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प्रश्न 10. नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म होता है ? इस संबंध में लेखक क्या जानकारी देता है?
उत्तर– नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाओं ने भी जन्म लिया है। 8वीं 9वीं सदी से आरंभिक हिन्दी का साहित्य मिलने लग जाता है। इसी काल में आर्य भाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ मराठी, बँगला आदि जन्म ले रही थीं।
प्रश्न 11. नंदिनागरी किसे कहते हैं? किस प्रसंग में लेखक ने उसकाउल्लेख किया है ?
उत्तर– दक्षिण भारत की यह नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में है। पहले-पहल विजयनगर के राजाओं के लेखों की लिपि को ही नंदिनागरी लिपि नाम दिया गया था।
प्रश्न 12. नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है ? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है?
उत्तर– यह मान्य है कि नागरी लिपि किसी नगर अर्थात् किसी बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादताडितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पटलीपुत्र अर्थात् पटना को नगर नाम से पुकारते थे। अतः इम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को नागर शैली कहते हैं।
अतः नागर या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। विद्वानों के अनुसार उत्तर भारत का यह बड़ा नगर निश्चित रूप से पटना ही होगा। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम देव था। इसलिए गुणों की राजधानी पटना को देवनगर भी कहा जाता था। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया था।
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प्रश्न 13. निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें ।
उत्तर– निबंध के आधार पर कालक्रम से नगरी लेखों से संबंधित प्रमाण इसप्रकार मिलते हैं-11वीं सदी में राजेन्द्र जैसे प्रतापी चेर राजाओं के सिक्कों पर नागर अक्षर देखने को मिलते हैं। 12वीं सदी के केरल के शसकों के सिक्कों पर ‘वीर केरलस्य’ जैसे शब्द नागरी लिपि में अंकित हैं। दक्षिण से प्राप्त वरगुण क पलयम ताम्रपत्र भी नागरी लिपि में 9वीं सदी की है।
1000 ई० के आस-पास मालवा नगर में नागर लिपि का इस्तेमाल होता था। विक्रमादित्य के समय पटना में देवनागरी का प्रयोग मिलता है। ईसा की 8वीं से 11वीं सदियों में नागरी लिपि पूरे भारत में व्याप्त थी। 8वीं सदी में दोहाकोश की तिब्बत से जो हस्तलिपि मिली है, वह नागरी लिपि में है। 754 ई० में राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का दानपत्र नागरी लिपि में प्राप्त हुआ है। 850 ई० में जैन गणितज्ञ महावीराचार्य के गणित सार-संग्रह की रचना मलती है जो नागरी लिपि में है।
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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 10वीं के हिंदी के पाठ 05 ‘नागरी लिपि’ का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !