आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 8वीं विज्ञान का पाठ ‘कपड़ा तरह-तरह के’ का नोट्स को देखने वाले है। Bihar Board Class 8th
कपड़ा तरह-तरह के |
सूती कपड़ा
सूती कपड़े हल्के और अत्यधिक आरामदेह होते हैं। और इसका उपयोग गर्मी के दिनों में अधिक किया जाता है। यह कपड़ा हमें ठण्डक महसूस करते है।
सुती कपड़े की खराबी
(i) बहुत जल्दी गंदा होता है।
(ii) पानी में धोने से सिकुड़ जाता है।
(iii) नमी के कारण फफूंद लग जाता है।
रेशम कपड़ा
रेशम कपड़े पहनने में आरामदायक होता हैं। और इसका उपयोग गर्मी के दिनों में किया जाता है। और यह चिकना और मुलायम होता है। इस कपड़ों को धोने पर सिकुड़ता नहीं है। और ना ही इसमें फफूंद लगता है।
ऊनी कपड़ा
ऊनी कपड़े सिकुड़ते हैं। इसमें फफूँद नहीं लगता है। परन्तु अधिक समय तक नमीयुक्त जगह में रखने पर फफूँद लग जाती है। ऊन कपड़े को धूप में रखने से उसका रंग हल्का हो जाता है।
पटसन कपड़ा
पटसन से बने कपड़े पहनने में आरामदेह होता है। और पटसन की बोरियां भी बनाई जाती है। और अब इसका कपड़ा भी बनाया जाने लगा है।
रेशे एवं कपड़े की कहानी
कपड़ा मानव सभ्यता के विकास का देन है। प्रारंभिक काल में मानव अपना तन ढकने के लिए घास-फूस, पेड़-पौधे तथा मृत पशुओं की खाल आदि का उपयोग करता था।
सर्वप्रथम सन से प्राप्त पौधे से वस्त्र का निर्माण किया गया। स्विस लेक के निवासी जो यूरोप के न्योलिथिक जाति कहलाते थे। ये लिनन के रेशे का प्रयोग मछली फँसाने की वंशी तथा जाल बनाने में करते थे। हेम्प सबसे पहला रेशा देने वाला पौधा था। 4500 ईस्वी पूर्व हेम्प की खेती चीन में हुई थी।
मोहनजोदड़ो की खुदाई में चांदी के एक पात्र के चारों ओर कपास सटी हुई प्राप्त हुई है। इससे पता चलता है कि भारत में कपास का उत्पादन 4000 ई.पू. से ही होता आ रहा है। रेशम का रेशा 2500 ई.पू. चीन में सबसे पहले प्रयोग में लाया गया। यहीं से रेशम का उद्गम होता है।
13वीं शताब्दी में सबसे अच्छा ऊन का उत्पादन स्पेन में हुआ था जो “मैरिनो वूल” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ढाका मलमल के लिए, बालचूर बालचुरी साड़ियों के लिए, बनारस बनारसी वस्त्रों के लिए और चंदेरी चंदेरी साड़ियों के लिए प्रसिद्ध हो गया। भागलपुर और कांजीवरम रेशमी कपड़े के लिए प्रसिद्ध हैं।
वस्त्र की बुनाई कैसे की जाती है?
पुराने समय में कपड़े की बुनाई हाथों से किया जाता था। लेकिन इसमें काफी समय लगते थे। इसलिए करघे का आविष्कार किया गया। और करघे की मदद से कपड़े की बुनाई बहुत जल्दी हो जाती है। और कपड़े की बुनाई करते समय बहुत सारे समस्या का सामना करना पड़ता था। जैसे की रेशे अच्छे नहीं होने के कारण कपड़े में बहुत जल्दी फफूंद लग जाते थे। इसलिए वैज्ञानिक के द्वारा नए-नए रेशे की खोज होते रहते है।
प्रश्न 1. कृत्रिम रेशा या मानव निर्मित रेशा किसे कहते है?
उत्तर– वैसे रेशे जिन्हें कृत्रिम रूप से या मानव द्वारा बनाया जाता है, उसे कृत्रिम रेशे कहते है।
जैसे– नाइलान, रेयान, ऐकि्लिक आदि।
प्रश्न 2. संश्लेषित रेशा किसे कहते है?
उत्तर– वैसा रेशा जिनको रसायनिक संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है, उसे संश्लेषित रेशा कहते है। जैसे– नाइलान, रेयान आदि।
रेशम के रेशे से बने वस्त्र बहुत महंगी और सुंदर होती है। रेशम के समान गुण वाले रेशे 1890 ईस्वी में वैज्ञानिकों को मिला।
रेयान
(i) यह रेशम के समान गुणों वाला एवं सस्ता होता है।
(ii) इस रेशे को प्राप्त करने के लिए लकड़ी या बाँस की लुगदी से कास्टिक सोडा की प्रतिक्रिया कराई जाती है।
(iii) रेयान को कपास के साथ मिलाकर बिस्तर की चादरें बनाते है।
(iv) रेयान को ऊन के साथ मिलाकर कालीन बनाते हैं।
(v) रेयान के कारण ही कम किमत में सुन्दर, रंग बिरंगे एवं मनमोहक वस्त्र तैयार होने लगा।
भारत में रेयान का पहला कारखान 1946 ईस्वी में केरल में स्थापित किया गया।
नाइलॉन
(i) नाइलॉन का निर्माण कोयले, जल तथा वायु से किया जाता है।
(ii) नाइलॉन रेशा मजबूत, लचीला और हल्का होता है।
(iii) इसका उपयोग रस्सी, पैराशूट, ब्रश, परदा, तम्बू आदि बनाने में किया जाता है।
पॉलिएस्टर
(i) इसकी विशेषताएँ लगभग नाइलॉन के सामान होता है।
(ii) इसका उपयोग बोतल, बर्तन, तार, चादर, कंबल, त्रिपाल इत्यादी बनाने में होता है।
(iii) टेरीलीन तथा PET लोकप्रिय पॉलिएस्टर है।
ऐकिलिक
(i) यह ऊन के समान गुणों वाला रेशा है।
(ii) जिसका उपयोग स्वेटर, शाल अथवा कंबल बनाने में किया जाता है।
(iii) यह ऊन से अधिक टिकाउ तथा सस्ते होते हैं।
आप रेशों की पहचान कैसे करेंगे?
सूती वस्त्र जल्दी से, पीली लौ के साथ जलता है। इसके जलने पर उसमें से कागज जलने जैसी गंध आती है तथा भूरे रंग की राख बच जाती है।
रेशम हवा में जल्दी जल जाती है तथा जलते समय उसमें से पंखों या बालों के जलने के समान गंध निकलती है। जले हुए किनारों पर चिपचिपे दाने पड़ जाते हैं। इनके राख में दाने पाए जाते हैं।
ऊन कपड़े धीरे-धीरे जलती है। जलते समय इसमें से पंखों के जलने के समान गंध निकलती है। जलने के बाद काले रंग के गुब्बारे जैसा पदार्थ रह जाता है।
रेयॉन, सूती की तरह जल्दी से लौ के साथ आग पकड़ लेता है, पिघल जाता है तथा काले दाने से पड़ जाते हैं। जलते समय इसमें से कागज या रस्सी के जलने के समान गंध आती है तथा अंत में भूरे रंग की राख शेष रह जाती है।
शुद्ध नाइलॉन अज्वलनशील है। यह पिघल जाती है किन्तु जलती नहीं है। पिघलते समय इसमें से उबलती हुई फली के समान गंध निकलती है।
JOIN NOW
दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 8वीं के विज्ञान के पाठ 04 ‘कपड़ा तरह-तरह के’ का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !
Nice notes